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अमोघ शिव कवच

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अमोघ शिव कवच शिव कवच अत्यंत दुर्लभ परन्तु चमत्कारिक है, इसका प्रभाव अमोघ है | बड़ी से बड़ी मुसीबतों को समाप्त करने में सिद्धहस्त यह शिव कवच परम-कल् याणकारी है | अथ विनियोग: अस्य श्री शिव कवच स्त्रोत्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि:, अनुष्टुप छंद:, श्री सदाशिव रुद्रो देवता, ह्रीं शक्ति:, रं कीलकम, श्रीं ह्रीं क्लीं बीजं, श्री सदाशिव प्रीत्यर्थे शिवकवच स्त्रोत्र जपे विनियोग: | अथ न्यास: (पहले सभी मंत्रो को बोलकर क्रम से करन्यास करे | तदुपरांत इन्ही मंत्रो से अंगन्यास करे| ) करन्यास ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने अन्गुष्ठाभ्याम नम: | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने तर्जनीभ्याम नम: | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने मध्यमाभ्याम नम:| ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने अनामिकाभ्याम नम: | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कनिष्ठिकाभ्याम नम: | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ यं र: अनादिशक्तिधाम्ने सर्वात्मने करतल करपृ

श्री रूद्राष्टकम्

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नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम् निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् । करालं महाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारपारं नतोहम् तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् । स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् । मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं । त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम् कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी । चिदानन्दसंदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी न यावद् उमानाथपादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् । न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् । जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो

श्री राजराजेश्वर्यष्टकम्

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अम्बा शाम्भवि चन्द्रमौलिरबलाऽपर्णा उमा पार्वती काली हैमवती शिवा त्रिनयनी कात्यायनी भैरवी ॥ सावित्री नवयौवना शुभकरी साम्राज्यलक्ष्मीप्रदा चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ॥ १ ॥ अम्बा मोहिनि देवता त्रिभुवनी आनन्दसन्दायिनी वाणी पल्लवपाणि वेणुमुरलीगानप्रिया लोलिनी ॥ कल्याणी उडुराजबिम्बवदना धूम्राक्षसंहारिणी चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ॥ २ ॥ अम्बा नूपुररत्नकङ्कणधरी केयूरहारावली जातीचम्पकवैजयन्तिलहरी ग्रैवेयकैराजिता ॥ वीणावेणुविनोदमण्डितकरा वीरासनेसंस्थिता चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ॥ ३ ॥ अम्बा रौद्रिणि भद्रकाली बगला ज्वालामुखी वैष्णवी ब्रह्माणी त्रिपुरान्तकी सुरनुता देदीप्यमानोज्ज्वला ॥ चामुण्डा श्रितरक्षपोषजननी दाक्षायणी पल्लवी चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ॥ ४ ॥ अम्बा शूल धनुः कुशाङ्कुशधरी अर्धेन्दुबिम्बाधरी वाराही मधुकैटभप्रशमनी वाणीरमासेविता ॥ मल्लद्यासुरमूकदैत्यमथनी माहेश्वरी अम्बिका चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ॥ ५ ॥ अम्बा सृष्टविनाशपालनकरी आर्या विसंशोभिता गायत्री प्रणवाक्षरामृतरसः पूर्णानुसन्धीकृता ॥ ओङ्कारी विनुत

श्रीराजराजेश्वरी मन्त्रमातृकास्तवः

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श्रीराजराजेश्वरीतर्पणस्तोत्रम् (विद्यार्चनपद्धतौ) ॐ श्रीगणेशाय नमः । ॐ क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं श्रीं । कल्याणायुतपूर्णचन्द्रवदनां प्राणेश्वरानन्दिनीं पूर्णां पूर्णतरां परेशमहिषीं पूर्णामृतास्वादिनीम् । सम्पूर्णां परमोत्तमामृतकलां विद्यावतीं भारतीं श्रीचक्रप्रियबिन्दुतर्पणपरां श्रीराजराजेश्वरीम् ॥ १॥ एकारादिसमस्तवर्णविविधाकारैकचिद्रूपिणीं चैतन्यात्मकचक्रराजनिलयां चन्द्रान्तसञ्चारिणीम् । भावाभावविभाविनीं भवपरां सद्भक्तिचिन्तामणिं श्रीचक्रप्रियबिन्दुतर्पणपरां श्रीराजराजेश्वरीम् ॥ २॥ ईहाधिक्परयोगिवृन्दविदितां स्वानन्दभूतां परां (ईशाधीश्वरयोगि) पश्यन्तीं तनुमध्यमां विलसिनीं श्रीवैखरीरूपिणीम् । आत्मानात्मविचारिणीं विवरगां विद्यां त्रिबीजात्मिकां श्रीचक्रप्रियबिन्दुतर्पणपरां श्रीराजराजेश्वरीम् ॥ ३॥ लक्ष्यालक्ष्यनिरीक्षणां निरूपमां रुद्राक्षमालाधरां त्र्यक्षार्धाकृतिदक्षवंशकलिकां दीर्घाक्षिदीर्घस्वराम् । भद्रां भद्रवरप्रदां भगवतीं भद्रेश्वरीं मुद्रिणीं श्रीचक्रप्रियबिन्दुतर्पणपरां श्रीराजराजेश्वरीम् ॥ ४॥

श्री शिवाष्टकम्

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॥ अथ श्री शिवाष्टकम् ॥ प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथ नाथं सदानन्द भाजाम्। भवद्भव्य भूतेश्वरं भूतनाथं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे॥1॥ गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकाल कालं गणेशादि पालम्। जटाजूट गङ्गोत्तरङ्गै र्विशालं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे॥2॥ मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महा मण्डलं भस्म भूषाधरं तम्। अनादिं ह्यपारं महा मोहमारं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे॥3॥ वटाधो निवासं महाट्टाट्टहासं महापाप नाशं सदा सुप्रकाशम्। गिरीशं गणेशं सुरेशं महेशं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे॥4॥ गिरीन्द्रात्मजा सङ्गृहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदापन्न गेहम्। परब्रह्म ब्रह्मादिभिर्-वन्द्यमानं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे॥5॥ कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाम्भोज नम्राय कामं ददानम्। बलीवर्धमानं सुराणां प्रधानं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे॥6॥ शरच्चन्द्र गात्रं गणानन्दपात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम्। अपर्णा कलत्रं सदा सच्चरित्रं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे॥7॥ हरं सर्पहारं चिता भूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारं। श्मशाने वसन्तं मनोजं दहन्तं, शिवं शङ्करं शम्भु मीशानमीडे॥8॥ स्वयं

श्री हनुमान चालीसा

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दोहा श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।। बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।। चौपाई जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।। राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।। महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।। कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुँचित केसा।। हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे। कांधे मूंज जनेउ साजे।। शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग वंदन।। बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।। सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।। भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे।। लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।। रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।। सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।। सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।। जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय रा

बजरंग बाण

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दोहा :  निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान। तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥   चौपाई :  :  जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥ जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥ जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥ आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥ जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥ बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥ अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥ लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥ अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥ जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥ जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥ ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥ ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥ जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥ बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥ भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥ इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥ सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धर